Echoes
Half a page of scribbled lines
Saturday, March 5, 2011
फिर वाही..
वही वादी
वही घटा
वही समां
वाही चेहरा
वाही आँखें
वही नज़र
वही निगाह
वही नशा
वाही मस्ती
वाही गहराई
वही एहसास
वाही खुशबू
वाही महक
वाही सांस
वाही बाहें
वाही गर्मी
वाही जन्नत
वाही रात
वाही ख्वाब
फिर वाही ख्वाब
फिर वाही ख्वाब...
- दीपक करामुंगिकर
1 comment:
Silentus Synisque Marcasus
said...
awesome!
March 9, 2011 at 11:44 PM
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1 comment:
awesome!
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